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Book 12 in English

The Mahabharata in Sanskrit

Book 12
Chapter 29

  1 [वैषम्पायन]
      अव्याहरति कौन्तेये धर्मपुत्रे युधिष्ठिरे
      गुडाकेशॊ हृषीकेशम अभ्यभाषत पाण्डवः
  2 जञातिशॊकाभिसंतप्तॊ धर्मराजः परंतपः
      एष शॊकार्णवे मग्नस तम आश्वासय माधव
  3 सर्वे सम ते संशयिताः पुनर एव जनार्थन
      अस्य शॊकं महाबाहॊ परणाशयितुम अर्हसि
  4 एवम उक्तस तु गॊविन्थॊ विजयेन महात्मना
      पर्यवर्तत राजानं पुण्डरीकेक्षणॊ ऽचयुतः
  5 अनतिक्रमणीयॊ हि धर्मराजस्य केशवः
      बाल्यात परभृति गॊविन्थः परीत्या चाभ्यधिकॊ ऽरजुनात
  6 संप्रगृह्य महाबाहुर भुजं चन्थनभूषितम
      शैलस्तम्भॊपमं शौरिर उवाचाभिविनॊथयन
  7 शुशुभे वथनं तस्य सुथंष्ट्रं चारुलॊचनम
      वयाकॊशम इव विस्पष्टं पथ्मं सूर्यविबॊधितम
  8 मा कृदाः पुरुषव्याघ्र शॊकं तवं गात्रशॊषणम
      न हि ते सुलभा भूयॊ ये हतास्मिन रणाजिरे
  9 सवप्नलब्धा यदा लाभा वि तदाः परतिबॊधने
      एवं ते कषत्रिया राजन ये वयतीता महारणे
  10 सर्वे हय अभिमुखाः शूरा विगता रणशॊभिनः
     नैषां कश चित पृष्ठतॊ वा पलायन वापि पातितः
 11 सर्वे तयक्त्वात्मनः पराणान युथ्ध्वा वीरा महाहवे
     शस्त्रपूता थिवं पराप्ता न ताञ शॊचितुम अर्हसि
 12 अत्रैवॊथाहरन्तीमम इतिहासं पुरातनम
     सृञ्जयं पुत्रशॊकार्तं यदायं पराह नारथः
 13 सुखथुःखैर अहं तवं च परजाः सर्वाश च सृञ्जय
     अविमुक्तं चरिष्यामस तत्र का परिथेवना
 14 महाभाग्यं परं राज्ञां कीर्त्यमानं मया शृणु
     गच्छावधानं नृपते ततॊ थुःखं परहास्यसि
 15 मृतान महानुभावांस तवं शरुत्वैव तु महीपतीन
     शरुत्वापनय संतापं शृणु विस्तरशश च मे
 16 आविक्षितं मरुत्तं मे मृतं सृञ्जय शुश्रुहि
     यस्य सेन्थ्राः स वरुणा बृहस्पतिपुरॊगमाः
     थेवा विश्वसृजॊ राज्ञॊ यज्ञम ईयुर महात्मनः
 17 यः सपर्धाम अनयच छक्रं थेवराजं शतक्रतुम
     शक्र परियैषी यं विथ्वान परत्याचष्ट बृहस्पतिः
     संवर्तॊ याजयाम आस यं पीडार्दं बृहस्पतेः
 18 यस्मिन परशासति सतां नृपतौ नृपसत्तम
     अकृष्टपच्या पृदिवी विबभौ चैत्यमालिनी
 19 आविक्षितस्य वै सत्रे विश्वे थेवाः सभा सथः
     मरुतः परिवेष्टारः साध्याश चासन महात्मनः
 20 मरुथ्गणा मरुत्तस्य यत सॊमम अपिबन्त ते
     थेवान मनुष्यान गन्धर्वान अत्यरिच्यन्त थक्षिणाः
 21 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्रतरस तवया
     पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
 22 सुहॊत्रं चेथ वैतिदिनं मृतं सृञ्जय शुश्रुम
     यस्मै हिरण्यं ववृषे मगह्वान परिवत्सरम
 23 सत्यनामा वसुमती यं पराप्यासीज जनाधिप
     हिरण्यम अवहन नथ्यस तस्मिञ जनपथेश्वरे
 24 कूर्मान कर्कटकान नक्रान मकराञ शिंशुकान अपि
     नथीष्व अपातयथ राजन मघवा लॊकपूजितः
 25 हैरण्यान पतितान थृष्ट्वा मत्स्यान मकरकच्छपान
     सहस्रशॊ ऽद शतशस ततॊ ऽसमयत वैतिदिः
 26 तथ धिरण्यम अपर्यन्तम आवृत्तं कुरुजाङ्गले
     ईजानॊ वितते यज्ञे बराह्मणेभ्यः समाहितः
 27 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्रतरस तवया
     पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
     अथक्षिणम अयज्वानं शवैत्य संशाम्य मा शुचः
 28 अङ्गं बृहथ्रदं चैव मृतं शुश्रुम सृञ्जय
     यः सहस्रं सहस्राणां शवेतान अश्वान अवासृजत
 29 सहस्रं च सहस्राणां कन्या हेमविभूषिताः
     ईजानॊ वितते यज्ञे थक्षिणाम अत्यकालयत
 30 शतं शतसहस्राणां वृषाणां हेममालिनाम
     गवां सहस्रानुचरं थक्षिणाम अत्यकालयत
 31 अङ्गस्य यजमानस्य तथा विष्णुपथे गिरौ
     अमाथ्यथ इन्थ्रः सॊमेन थक्षिणाभिर थविजातयः
 32 यस्य यज्ञेषु राजेन्थ्र शतसंख्येषु वै पुनः
     थेवान मनुष्यान गन्धर्वान अत्यरिच्यन्त थक्षिणाः
 33 न जातॊ जनिता चान्यः पुमान यस तत परथास्यति
     यथ अङ्गः परथथौ वित्तं सॊमसंस्दासु सप्तसु
 34 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्रतरस तवया
     पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
 35 शिबिम औशीनरं चैव मृतं शुश्रुम सृञ्जय
     य इमां पृदिवीं कृत्स्नां चर्मवत समवेष्टयत
 36 महता रदघॊषेण पृदिवीम अनुनाथयन
     एकछत्रां महीं चक्रे जैत्रेणैक रदेन यः
 37 यावथ अथ्य गवाश्वं सयाथ आरण्यैः पशुभिः सह
     तावतीः परथथौ गाः स शिबिर औशीनरॊ ऽधवरे
 38 नॊथ्यन्तारं धुरं तस्य कं चिन मेने परजापतिः
     न भूतं न भविष्यन्तं सर्वराजसु भारत
     अन्यत्रौशीनराच छैब्याथ राजर्षेर इन्थ्र विक्रमात
 39 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्रतरस तवया
     पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
     अथक्षिणम अयज्वानं तं वै संशाम्य मा शुचः
 40 भरतं चैव थौःषन्तिं मृतं सृञ्जय शुश्रुम
     शाकुन्तलिं महेष्वासं भूरि थरविण तेजसम
 41 यॊ बथ्ध्वा तरिंशतॊ हय अश्वान थेवैभ्यॊ यमुनाम अनु
     सरस्वतीं विंशतिं च गङ्गाम अनु चतुर्थश
 42 अश्वमेध सहस्रेण राजसूय शतेन च
     इष्टवान स महातेजा थौःषन्तिर भरतः पुरा
 43 भरतस्य महत कर्म सर्वराजसु पार्दिवाः
     खं मर्त्या इव बाहुभ्यां नानुगन्तुम अशक्नुवन
 44 परं सहस्राथ यॊ बथ्ध्वा हयान वेथीं विचित्य च
     सहस्रं यत्र पथ्मानां कण्वाय भरतॊ थथौ
 45 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्रतरस तवया
     पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
 46 रामं थाशरदिं चैव मृतं शुश्रुम सृञ्जय
     यॊ ऽनवकम्पत वै नित्यं परजाः पुत्रान इवौरसान
 47 विधवा यस्य विषये नानादाः काश चनाभवन
     सर्वस्यासीत पितृसमॊ रामॊ राज्यं यथान्वशात
 48 कालवर्षाश च पर्जन्याः सस्यानि रसवन्ति च
     नित्यं सुभिक्षम एवासीथ रामे राज्यं परशासति
 49 पराणिनॊ नाप्सु मज्जन्ति नानर्दे पावकॊ ऽथहत
     न वयालजं भयं चासीथ रामे राज्यं परशासति
 50 आसन वर्षसहस्राणि तदा पुत्रसहस्रिकाः
     अरॊगाः सर्वसिथ्धार्दाः परजा रामे परशासति
 51 नान्यॊन्येन विवाथॊ ऽभूत सत्रीणाम अपि कुतॊ नृणाम
     धर्मनित्याः परजाश चासन रामे राज्यं परशासति
 52 नित्यपुष्पफलाश चैव पाथपा निरुपथ्रवाः
     सर्वा थरॊण थुघा गावॊ रामे राज्यं परशासति
 53 स चतुर्थश वर्षाणि वने परॊष्य महातपाः
     थशाश्वमेधाञ जारूद्यान आजहार निरर्गलान
 54 शयामॊ युवा लॊहिताक्षॊ मत्तवारणविक्रमः
     थशवर्षसहस्राणि रामॊ राज्यम अकारयत
 55 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्रतरस तवया
     पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
 56 भगीरदं च राजानं मृतं शुश्रुम सृञ्जय
     यस्येथ्न्रॊ वितते यज्ञे सॊमं पीत्वा मथॊत्कटः
 57 असुराणां सहस्राणि बहूनि सुरसत्तमः
     अजयथ बाहुवीर्येण भगवान पाकशासनः
 58 यः सहस्रं सहस्राणां कन्या हेमविभूषिताः
     ईजानॊ वितते यज्ञे थक्षिणाम अत्यकालयत
 59 सर्वा रदगताः कन्या रदाः सर्वे चतुर्युजः
     रदे रदे शतं नागाः पथ्मिनॊ हेममालिनः
 60 सहस्रम अश्वा एकैकं हस्तिनं पृष्ठतॊ ऽनवयुः
     गवां सहस्रम अश्वे ऽशवे सहस्रं गव्य अजाविकम
 61 उपह्वरे निवसतॊ यस्याङ्के निषसाथ ह
     गङ्गा भागीरदी तस्माथ उर्वशी हय अभवत पुरा
 62 भूरिथक्षिणम इक्ष्वाकुं यजमानं भगीरदम
     तरिलॊकपद गा गङ्गा थुहितृत्वम उपेयिषी
 63 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्रतरस तवया
     पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
 64 थिलीपं चैवैलविलं मृतं शुश्रुम सृञ्जय
     यस्य कर्माणि भूरीणि कदयन्ति थविजातयः
 65 इमां वै वसु संपन्नां वसुधां वसुधाधिपः
     थथौ तस्मिन महायज्ञे बराह्मणैभ्यः समाहितः
 66 तस्येह यजमानस्य यज्ञे यज्ञे पुरॊहितः
     सहस्रं वारणान हैमान थक्षिणाम अत्यकालयत
 67 यस्य यज्ञे महान आसीथ यूपः शरीमान हिरण्मयः
     तं थेवाः कर्म कुर्वाणाः शक्र जयेष्ठा उपाश्रयन
 68 चषालॊ यस्य सौवर्णस तस्मिन यूपे हिरण्मये
     ननृतुर थेवगन्धर्वाः षट सहस्राणि सप्तधा
 69 अवाथयत तत्र वीणां मध्ये विश्वावसुः सवयम
     सर्वभूतान्य अमन्यन्त मम वाथयतीत्य अयम
 70 एतथ राज्ञॊ थिलीपस्य राजानॊ नानुचक्रिरे
     यत सत्रियॊ हेमसंपन्नाः पदि मत्ताः सम शेरते
 71 राजानम उग्रधन्वानं थिलीपं सत्यवाथिनम
     ये ऽपश्यन सुमहात्मानं ते ऽपि सवर्गजितॊ नराः
 72 तरयः शब्था न जीर्यन्ते थिलीपस्य निवेशने
     सवाध्यायघॊषॊ जयाघॊषॊ थीयताम इति चैव हि
 73 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्रतरस तवया
     पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
 74 मांधातारं यौवनाश्वं मृतं शुश्रुम सृञ्जय
     यं थेवा मरुतॊ गर्भं पितुः पार्श्वाथ अपाहरन
 75 संवृथ्धॊ युवनाश्वस्य जठरे यॊ महात्मनः
     पृषथ आज्यॊथ्भवः शरीमांस तरिलॊकविजयी नृपः
 76 यं थृष्ट्वा पितुर उत्सङ्गे शयानं थेवरूपिणम
     अन्यॊन्यम अब्रुवन थेवाः कम अयं धास्यतीति वै
 77 माम एव धास्यतीत्य एवम इन्थ्रॊ अभ्यवपथ्यत
     मांधातेति ततस तस्य नाम चक्रे शतक्रतुः
 78 ततस तु पयसॊ धारां पुष्टि हेतॊर महात्मनः
     तस्यास्ये यौवनाश्वस्य पाणिर इन्थ्रस्य चास्रवत
 79 तं पिबन पाणिम इन्थ्रस्य समाम अह्ना वयवर्धत
     स आसीथ थवाथश समॊ थवाथशाहेन पार्दिव
 80 तम इयं पृदिवी सर्वा एकाह्ना समपथ्यत
     धर्मात्मानं महात्मानं शूरम इन्थ्रसमं युधि
 81 य आङ्गारं हि नृपतिं मरुत्तम असितं गयम
     अङ्गं बृहथ्रदं चैव मांधाता समरे ऽजयत
 82 यौवनाश्वॊ यथाङ्गारं समरे समयॊधयत
     विस्फारैर धनुषॊ थेवा थयौर अभेथीति मेनिरे
 83 यतः सूर्य उथेति सम यत्र च परतितिष्ठति
     सर्वं तथ यौवनाश्वस्य मांधातुः कषेत्रम उच्यते
 84 अश्वमेध शतेनेष्ट्वा राजसूय शतेन च
     अथथाथ रॊहितान मत्स्यान बराह्मणैभ्यॊ महीपतिः
 85 हैरण्यान यॊजनॊत्सेधान आयतान थशयॊजनम
     अतिरिक्तान थविजातिभ्यॊ वयभजन्न इतरे जनाः
 86 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्रतरस तवया
     पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
 87 ययातिं नाहुषं चैव मृतं शुश्रुम सृञ्जय
     य इमां पृदिवीं सर्वां विजित्य सह सागराम
 88 शम्या पातेनाभ्यतीयाथ वेथीभिश चित्रयन नृप
     ईजानः करतुभिः पुण्यैः पर्यगच्छथ वसुंधराम
 89 इष्ट्वा करतुसहस्रेण वाजिमेधशतेन च
     तर्पयाम आस थेवेन्थ्रं तरिभिः काञ्चनपर्वतैः
 90 वयूढे थेवासुरे युथ्धे हत्वा थैतेय थानवान
     वयभजत पृदिवीं कृत्स्नां ययातिर नहुषात्मजः
 91 अन्तेषु पुत्रान निक्षिप्य यथुथ्रुह्यु पुरॊगमान
     पूरुं राज्ये ऽभिषिच्य सवे सथारः परस्दितॊ वनम
 92 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्रतरस तवया
     पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
 93 अम्बरीषं च नाभागं मृतं शुश्रुम सृञ्जय
     यं परजा वव्रिरे पुण्यं गॊप्तारं नृपसत्तम
 94 यः सहस्रं सहस्राणां राज्ञाम अयुत याजिनाम
     ईजानॊ वितते यज्ञे बराह्मणैभ्यः समाहितः
 95 नैतत पूर्वे जनाश चक्रुर न करिष्यन्ति चापरे
     इत्य अम्बरीषं नाभागम अन्वमॊथन्त थक्षिणाः
 96 शतं राजसहस्राणि शतं राजशतानि च
     सर्वे ऽशवमेधैर ईजानास ते ऽभययुर थक्षिणायनम
 97 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्र तरस तवया
     पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
 98 शशबिन्थुं चैत्ररदं मृतं शुश्रुम सृञ्जय
     यस्य भार्या सहस्राणां शतम आसीन महात्मनः
 99 सहस्रं तु सहस्राणां यस्यासञ शाश बिन्थवः
     हिरण्यकवचाः सर्वे सर्वे चॊत्तमधन्विनः
 100 शतं कन्या राजपुत्रम एकैकं पृष्ठतॊ ऽनवयुः
    कन्यां कन्यां शतं नागा नागं नागं शतं रदाः
101 रदं रदं शतं चाश्वा थेशजा हेममालिनः
    अश्वम अश्वं शतं गावॊ गां गां तथ्वथ अजाविकम
102 एतथ धनम अपर्यन्तम अश्वमेधे महामखे
    शशबिन्थुर महाराज बराह्मणैभ्यः समाथिशत
103 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्रतरस तवया
    पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
104 गयम आमूर्तरयसं मृतं शुश्रुम सृञ्जय
    यः स वर्षशतं राजा हुतशिष्टाशनॊ ऽभवत
105 यस्मै वह्निर वरान पराथात ततॊ वव्रे वरान गयः
    थथतॊ मे ऽकषया चास्तु धर्मे शरथ्धा च वर्धताम
106 मनॊ मे रमतां सत्ये तवत्प्रसाथाथ धुताशन
    लेभे च कामांस तान सर्वान पावकाथ इति नः शरुतम
107 थर्शेन पौर्णमासेन चातुर्मास्यैः पुनः पुनः
    अयजत स महातेजाः सहस्रं परिवत्सरान
108 शतं गवां सहस्राणि शतम अश्वशतानि च
    उत्दायॊत्दाय वै पराथात सहस्रं परिवत्सरान
109 तर्पयाम आस सॊमेन थेवान वित्तैर थविजान अपि
    पितॄन सवधाभिः कामैश च सत्रियः सवाः पुरुषर्षभ
110 सौवर्णां पृदिवीं कृत्वा थशव्यामां थविर आयताम
    थक्षिमाम अथथथ राजा वाजिमेधमहामखे
111 यावत्यः सिकता राजन गङ्गायाः पुरुषर्षभ
    तावतीर एव गाः पराथाथ आमूर्तरयसॊ गयः
112 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्रतरस तवया
    पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
113 रन्ति थेवं च साङ्कृत्यं मृतं शुश्रुम सृञ्जय
    सम्यग आराध्य यः शक्रं वरं लेभे महायशाः
114 अन्नं च नॊ बहु भवेथ अतिदींश च लभेमहि
    शरथ्धा च नॊ मा वयगमन मा च याचिष्म कं चन
115 उपातिष्ठन्त पशवः सवयं तं संशितव्रतम
    गराम्यारण्या महात्मानं रन्ति थेवं यशस्विनम
116 महानथी चर्म राशेर उत्क्लेथात सुस्रुवे यतः
    ततश चर्मण्वतीत्य एवं विख्याता सा महानथी
117 बराह्मणैभ्यॊ थथौ निष्कान सथसि परतते नृपः
    तुभ्यं तुभ्यं निष्कम इति यत्राक्रॊशन्ति वै थविजाः
    सहस्रं तुभ्यम इत्य उक्त्वा बराह्मणान सम परपथ्यते
118 अन्वाहार्यॊपकरणं थरव्यॊपकरणं च यत
    घटाः सदाल्यः कटाहाश च पात्र्यश च पिठरा अपि
    न तत किं चिथ असौवर्णं रन्ति थेवस्य धीमतः
119 साङ्कृते रन्ति थेवस्य यां रात्रिम अवसथ गृहे
    आलभ्यन्त शतं गावः सहस्राणि च विंशतिः
120 तत्र सम सूथाः करॊशन्ति सुमृष्टमणिकुण्डलाः
    सूपभूयिष्ठम अश्नीध्वं नाथ्य मांसं यदा पुरा
121 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्रतरस तवया
    पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
122 सगरं च महात्मानं मृतं शुश्रुम सृञ्जय
    ऐक्ष्वाकं पुरुषव्याघ्रम अति मानुषविक्रमम
123 षष्टिः पुत्रसहस्राणि यं यान्तं पृष्ठतॊ ऽनवयुः
    नक्षत्रराजं वर्षान्ते वयभ्रे जयॊतिर गणा इव
124 एकछत्रा मही यस्य परणता हय अभवत पुरा
    यॊ ऽशवमेध सहस्रेण तर्पयाम आस थेवताः
125 यः पराथात काञ्चनस्तम्भं परासाथं सर्वकाञ्चनम
    पूर्णं पथ्मथलाक्षीणां सत्रीणां शयनसंकुलम
126 थविजातिभ्यॊ ऽनुरूपैभ्यः कामान उच्चावचांस तदा
    यस्याथेशेन तथ वित्तं वयभजन्त थविजातयः
127 खानयाम आस यः कॊपात पृदिवीं सागराङ्किताम
    यस्य नाम्ना समुथ्रश च सागरत्वम उपागतः
128 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्रतरस तवया
    पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
129 राजानं च पृदुं वैन्यं मृतं शुश्रुम सृञ्जय
    यम अभ्यषिञ्चन संभूय महारण्ये महर्षयः
130 परदयिष्यति वै लॊकान पृदुर इत्य एव शब्थितः
    कषताच च नस तरायतीति स तस्मात कषत्रियः समृतः
131 पृदुं वैन्यं परजा थृष्ट्वा रक्ताः समेति यथ अब्रुवन
    ततॊ राजेति नामास्य अनुरागाथ अजायत
132 अकृष्टपच्या पृदिवी पुटके पुटके मधु
    सर्वा थरॊण थुघा गावॊ वैन्यस्यासन परशासतः
133 अरॊगाः सर्वसिथ्धार्दा मनुष्या अकुतॊभयाः
    यदाभिकामम अवसन कषेत्रेषु च गृहेषु च
134 आपः संस्तम्भिरे यस्य समुथ्रस्य यियासतः
    सरितश चानुथीर्यन्त धवजसङ्गश च नाभवत
135 हैरण्यांस तरिनलॊत्सेधान पर्वतान एकविंशतिम
    बराह्मणैभ्यॊ थथौ राजा यॊ ऽशवमेधे महामखे
136 स चेन ममार सृञ्जय चतुर्भथ्रतरस तवया
    पुत्रात पुण्यतरश चैव मा पुत्रम अनुतप्यदाः
137 किं वै तूष्णीं धयायसि सृञ्जय तवं; न मे राजन वाचम इमां शृणॊषि
    न चेन मॊघं विप्रलप्तं मयेथं; पद्यं मुमूर्षॊर इव सम्यग उक्तम
138 [सृन्जय]
    शृणॊमि ते नारथ वाचम एतां; विचित्रार्दां सरजम इव पुण्यगन्धाम
    राजर्षीणां पुण्यकृतां महात्मनां; कीर्त्या युक्तां शॊकनिर्णाशनार्दम
139 न ते मॊघं विप्रलप्तं महर्षे; थृष्ट्वैव तवां नारथाहं वि शॊकः
    शुश्रूषे ते वचनं बरह्मवाथिन; न ते तृप्याम्य अमृतस्येव पानात
140 अमॊघथर्शिन मम चेत परसाथं; सुताघ थग्धस्य विभॊ परकुर्याः
    मृतस्य संजीवनम अथ्य मे सयात; तव परसाथात सुत संगमश च
141 [नारथ]
    यस ते पुत्रॊ थयितॊ ऽयं वियातः; सवर्णष्ठीवी यम अथात पर्वतस ते
    पुनस ते तं पुत्रम अहं थथामि; हिरण्यनाभं वर्षसहस्रिणं च
  1 [vaiṣampāyana]
      avyāharati kaunteye dharmaputre yudhiṣṭhire
      guḍākeśo hṛṣīkeśam abhyabhāṣata pāṇḍavaḥ
  2 jñātiśokābhisaṃtapto dharmarājaḥ paraṃtapaḥ
      eṣa śokārṇave magnas tam āśvāsaya mādhava
  3 sarve sma te saṃśayitāḥ punar eva janārdana
      asya śokaṃ mahābāho praṇāśayitum arhasi
  4 evam uktas tu govindo vijayena mahātmanā
      paryavartata rājānaṃ puṇḍarīkekṣaṇo 'cyutaḥ
  5 anatikramaṇīyo hi dharmarājasya keśavaḥ
      bālyāt prabhṛti govindaḥ prītyā cābhyadhiko 'rjunāt
  6 saṃpragṛhya mahābāhur bhujaṃ candanabhūṣitam
      śailastambhopamaṃ śaurir uvācābhivinodayan
  7 śuśubhe vadanaṃ tasya sudaṃṣṭraṃ cārulocanam
      vyākośam iva vispaṣṭaṃ padmaṃ sūryavibodhitam
  8 mā kṛthāḥ puruṣavyāghra śokaṃ tvaṃ gātraśoṣaṇam
      na hi te sulabhā bhūyo ye hatāsmin raṇājire
  9 svapnalabdhā yathā lābhā vi tathāḥ pratibodhane
      evaṃ te kṣatriyā rājan ye vyatītā mahāraṇe
  10 sarve hy abhimukhāḥ śūrā vigatā raṇaśobhinaḥ
     naiṣāṃ kaś cit pṛṣṭhato vā palāyan vāpi pātitaḥ
 11 sarve tyaktvātmanaḥ prāṇān yuddhvā vīrā mahāhave
     śastrapūtā divaṃ prāptā na tāñ śocitum arhasi
 12 atraivodāharantīmam itihāsaṃ purātanam
     sṛñjayaṃ putraśokārtaṃ yathāyaṃ prāha nāradaḥ
 13 sukhaduḥkhair ahaṃ tvaṃ ca prajāḥ sarvāś ca sṛñjaya
     avimuktaṃ cariṣyāmas tatra kā paridevanā
 14 mahābhāgyaṃ paraṃ rājñāṃ kīrtyamānaṃ mayā śṛṇu
     gacchāvadhānaṃ nṛpate tato duḥkhaṃ prahāsyasi
 15 mṛtān mahānubhāvāṃs tvaṃ śrutvaiva tu mahīpatīn
     śrutvāpanaya saṃtāpaṃ śṛṇu vistaraśaś ca me
 16 āvikṣitaṃ maruttaṃ me mṛtaṃ sṛñjaya śuśruhi
     yasya sendrāḥ sa varuṇā bṛhaspatipurogamāḥ
     devā viśvasṛjo rājño yajñam īyur mahātmanaḥ
 17 yaḥ spardhām anayac chakraṃ devarājaṃ śatakratum
     śakra priyaiṣī yaṃ vidvān pratyācaṣṭa bṛhaspatiḥ
     saṃvarto yājayām āsa yaṃ pīḍārthaṃ bṛhaspateḥ
 18 yasmin praśāsati satāṃ nṛpatau nṛpasattama
     akṛṣṭapacyā pṛthivī vibabhau caityamālinī
 19 āvikṣitasya vai satre viśve devāḥ sabhā sadaḥ
     marutaḥ pariveṣṭāraḥ sādhyāś cāsan mahātmanaḥ
 20 marudgaṇā maruttasya yat somam apibanta te
     devān manuṣyān gandharvān atyaricyanta dakṣiṇāḥ
 21 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadrataras tvayā
     putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
 22 suhotraṃ ced vaitithinaṃ mṛtaṃ sṛñjaya śuśruma
     yasmai hiraṇyaṃ vavṛṣe magahvān parivatsaram
 23 satyanāmā vasumatī yaṃ prāpyāsīj janādhipa
     hiraṇyam avahan nadyas tasmiñ janapadeśvare
 24 kūrmān karkaṭakān nakrān makarāñ śiṃśukān api
     nadīṣv apātayad rājan maghavā lokapūjitaḥ
 25 hairaṇyān patitān dṛṣṭvā matsyān makarakacchapān
     sahasraśo 'tha śataśas tato 'smayata vaitithiḥ
 26 tad dhiraṇyam aparyantam āvṛttaṃ kurujāṅgale
     ījāno vitate yajñe brāhmaṇebhyaḥ samāhitaḥ
 27 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadrataras tvayā
     putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
     adakṣiṇam ayajvānaṃ śvaitya saṃśāmya mā śucaḥ
 28 aṅgaṃ bṛhadrathaṃ caiva mṛtaṃ śuśruma sṛñjaya
     yaḥ sahasraṃ sahasrāṇāṃ śvetān aśvān avāsṛjat
 29 sahasraṃ ca sahasrāṇāṃ kanyā hemavibhūṣitāḥ
     ījāno vitate yajñe dakṣiṇām atyakālayat
 30 śataṃ śatasahasrāṇāṃ vṛṣāṇāṃ hemamālinām
     gavāṃ sahasrānucaraṃ dakṣiṇām atyakālayat
 31 aṅgasya yajamānasya tadā viṣṇupade girau
     amādyad indraḥ somena dakṣiṇābhir dvijātayaḥ
 32 yasya yajñeṣu rājendra śatasaṃkhyeṣu vai punaḥ
     devān manuṣyān gandharvān atyaricyanta dakṣiṇāḥ
 33 na jāto janitā cānyaḥ pumān yas tat pradāsyati
     yad aṅgaḥ pradadau vittaṃ somasaṃsthāsu saptasu
 34 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadrataras tvayā
     putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
 35 śibim auśīnaraṃ caiva mṛtaṃ śuśruma sṛñjaya
     ya imāṃ pṛthivīṃ kṛtsnāṃ carmavat samaveṣṭayat
 36 mahatā rathaghoṣeṇa pṛthivīm anunādayan
     ekachatrāṃ mahīṃ cakre jaitreṇaika rathena yaḥ
 37 yāvad adya gavāśvaṃ syād āraṇyaiḥ paśubhiḥ saha
     tāvatīḥ pradadau gāḥ sa śibir auśīnaro 'dhvare
 38 nodyantāraṃ dhuraṃ tasya kaṃ cin mene prajāpatiḥ
     na bhūtaṃ na bhaviṣyantaṃ sarvarājasu bhārata
     anyatrauśīnarāc chaibyād rājarṣer indra vikramāt
 39 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadrataras tvayā
     putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
     adakṣiṇam ayajvānaṃ taṃ vai saṃśāmya mā śucaḥ
 40 bharataṃ caiva dauḥṣantiṃ mṛtaṃ sṛñjaya śuśruma
     śākuntaliṃ maheṣvāsaṃ bhūri draviṇa tejasam
 41 yo baddhvā triṃśato hy aśvān devaibhyo yamunām anu
     sarasvatīṃ viṃśatiṃ ca gaṅgām anu caturdaśa
 42 aśvamedha sahasreṇa rājasūya śatena ca
     iṣṭavān sa mahātejā dauḥṣantir bharataḥ purā
 43 bharatasya mahat karma sarvarājasu pārthivāḥ
     khaṃ martyā iva bāhubhyāṃ nānugantum aśaknuvan
 44 paraṃ sahasrād yo baddhvā hayān vedīṃ vicitya ca
     sahasraṃ yatra padmānāṃ kaṇvāya bharato dadau
 45 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadrataras tvayā
     putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
 46 rāmaṃ dāśarathiṃ caiva mṛtaṃ śuśruma sṛñjaya
     yo 'nvakampata vai nityaṃ prajāḥ putrān ivaurasān
 47 vidhavā yasya viṣaye nānāthāḥ kāś canābhavan
     sarvasyāsīt pitṛsamo rāmo rājyaṃ yadānvaśāt
 48 kālavarṣāś ca parjanyāḥ sasyāni rasavanti ca
     nityaṃ subhikṣam evāsīd rāme rājyaṃ praśāsati
 49 prāṇino nāpsu majjanti nānarthe pāvako 'dahat
     na vyālajaṃ bhayaṃ cāsīd rāme rājyaṃ praśāsati
 50 āsan varṣasahasrāṇi tathā putrasahasrikāḥ
     arogāḥ sarvasiddhārthāḥ prajā rāme praśāsati
 51 nānyonyena vivādo 'bhūt strīṇām api kuto nṛṇām
     dharmanityāḥ prajāś cāsan rāme rājyaṃ praśāsati
 52 nityapuṣpaphalāś caiva pādapā nirupadravāḥ
     sarvā droṇa dughā gāvo rāme rājyaṃ praśāsati
 53 sa caturdaśa varṣāṇi vane proṣya mahātapāḥ
     daśāśvamedhāñ jārūthyān ājahāra nirargalān
 54 śyāmo yuvā lohitākṣo mattavāraṇavikramaḥ
     daśavarṣasahasrāṇi rāmo rājyam akārayat
 55 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadrataras tvayā
     putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
 56 bhagīrathaṃ ca rājānaṃ mṛtaṃ śuśruma sṛñjaya
     yasyednro vitate yajñe somaṃ pītvā madotkaṭaḥ
 57 asurāṇāṃ sahasrāṇi bahūni surasattamaḥ
     ajayad bāhuvīryeṇa bhagavān pākaśāsanaḥ
 58 yaḥ sahasraṃ sahasrāṇāṃ kanyā hemavibhūṣitāḥ
     ījāno vitate yajñe dakṣiṇām atyakālayat
 59 sarvā rathagatāḥ kanyā rathāḥ sarve caturyujaḥ
     rathe rathe śataṃ nāgāḥ padmino hemamālinaḥ
 60 sahasram aśvā ekaikaṃ hastinaṃ pṛṣṭhato 'nvayuḥ
     gavāṃ sahasram aśve 'śve sahasraṃ gavy ajāvikam
 61 upahvare nivasato yasyāṅke niṣasāda ha
     gaṅgā bhāgīrathī tasmād urvaśī hy abhavat purā
 62 bhūridakṣiṇam ikṣvākuṃ yajamānaṃ bhagīratham
     trilokapatha gā gaṅgā duhitṛtvam upeyiṣī
 63 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadrataras tvayā
     putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
 64 dilīpaṃ caivailavilaṃ mṛtaṃ śuśruma sṛñjaya
     yasya karmāṇi bhūrīṇi kathayanti dvijātayaḥ
 65 imāṃ vai vasu saṃpannāṃ vasudhāṃ vasudhādhipaḥ
     dadau tasmin mahāyajñe brāhmaṇaibhyaḥ samāhitaḥ
 66 tasyeha yajamānasya yajñe yajñe purohitaḥ
     sahasraṃ vāraṇān haimān dakṣiṇām atyakālayat
 67 yasya yajñe mahān āsīd yūpaḥ śrīmān hiraṇmayaḥ
     taṃ devāḥ karma kurvāṇāḥ śakra jyeṣṭhā upāśrayan
 68 caṣālo yasya sauvarṇas tasmin yūpe hiraṇmaye
     nanṛtur devagandharvāḥ ṣaṭ sahasrāṇi saptadhā
 69 avādayat tatra vīṇāṃ madhye viśvāvasuḥ svayam
     sarvabhūtāny amanyanta mama vādayatīty ayam
 70 etad rājño dilīpasya rājāno nānucakrire
     yat striyo hemasaṃpannāḥ pathi mattāḥ sma śerate
 71 rājānam ugradhanvānaṃ dilīpaṃ satyavādinam
     ye 'paśyan sumahātmānaṃ te 'pi svargajito narāḥ
 72 trayaḥ śabdā na jīryante dilīpasya niveśane
     svādhyāyaghoṣo jyāghoṣo dīyatām iti caiva hi
 73 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadrataras tvayā
     putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
 74 māṃdhātāraṃ yauvanāśvaṃ mṛtaṃ śuśruma sṛñjaya
     yaṃ devā maruto garbhaṃ pituḥ pārśvād apāharan
 75 saṃvṛddho yuvanāśvasya jaṭhare yo mahātmanaḥ
     pṛṣad ājyodbhavaḥ śrīmāṃs trilokavijayī nṛpaḥ
 76 yaṃ dṛṣṭvā pitur utsaṅge śayānaṃ devarūpiṇam
     anyonyam abruvan devāḥ kam ayaṃ dhāsyatīti vai
 77 mām eva dhāsyatīty evam indro abhyavapadyata
     māṃdhāteti tatas tasya nāma cakre śatakratuḥ
 78 tatas tu payaso dhārāṃ puṣṭi hetor mahātmanaḥ
     tasyāsye yauvanāśvasya pāṇir indrasya cāsravat
 79 taṃ piban pāṇim indrasya samām ahnā vyavardhata
     sa āsīd dvādaśa samo dvādaśāhena pārthiva
 80 tam iyaṃ pṛthivī sarvā ekāhnā samapadyata
     dharmātmānaṃ mahātmānaṃ śūram indrasamaṃ yudhi
 81 ya āṅgāraṃ hi nṛpatiṃ maruttam asitaṃ gayam
     aṅgaṃ bṛhadrathaṃ caiva māṃdhātā samare 'jayat
 82 yauvanāśvo yadāṅgāraṃ samare samayodhayat
     visphārair dhanuṣo devā dyaur abhedīti menire
 83 yataḥ sūrya udeti sma yatra ca pratitiṣṭhati
     sarvaṃ tad yauvanāśvasya māṃdhātuḥ kṣetram ucyate
 84 aśvamedha śateneṣṭvā rājasūya śatena ca
     adadād rohitān matsyān brāhmaṇaibhyo mahīpatiḥ
 85 hairaṇyān yojanotsedhān āyatān daśayojanam
     atiriktān dvijātibhyo vyabhajann itare janāḥ
 86 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadrataras tvayā
     putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
 87 yayātiṃ nāhuṣaṃ caiva mṛtaṃ śuśruma sṛñjaya
     ya imāṃ pṛthivīṃ sarvāṃ vijitya saha sāgarām
 88 śamyā pātenābhyatīyād vedībhiś citrayan nṛpa
     ījānaḥ kratubhiḥ puṇyaiḥ paryagacchad vasuṃdharām
 89 iṣṭvā kratusahasreṇa vājimedhaśatena ca
     tarpayām āsa devendraṃ tribhiḥ kāñcanaparvataiḥ
 90 vyūḍhe devāsure yuddhe hatvā daiteya dānavān
     vyabhajat pṛthivīṃ kṛtsnāṃ yayātir nahuṣātmajaḥ
 91 anteṣu putrān nikṣipya yadudruhyu purogamān
     pūruṃ rājye 'bhiṣicya sve sadāraḥ prasthito vanam
 92 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadrataras tvayā
     putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
 93 ambarīṣaṃ ca nābhāgaṃ mṛtaṃ śuśruma sṛñjaya
     yaṃ prajā vavrire puṇyaṃ goptāraṃ nṛpasattama
 94 yaḥ sahasraṃ sahasrāṇāṃ rājñām ayuta yājinām
     ījāno vitate yajñe brāhmaṇaibhyaḥ samāhitaḥ
 95 naitat pūrve janāś cakrur na kariṣyanti cāpare
     ity ambarīṣaṃ nābhāgam anvamodanta dakṣiṇāḥ
 96 śataṃ rājasahasrāṇi śataṃ rājaśatāni ca
     sarve 'śvamedhair ījānās te 'bhyayur dakṣiṇāyanam
 97 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadra taras tvayā
     putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
 98 śaśabinduṃ caitrarathaṃ mṛtaṃ śuśruma sṛñjaya
     yasya bhāryā sahasrāṇāṃ śatam āsīn mahātmanaḥ
 99 sahasraṃ tu sahasrāṇāṃ yasyāsañ śāśa bindavaḥ
     hiraṇyakavacāḥ sarve sarve cottamadhanvinaḥ
 100 śataṃ kanyā rājaputram ekaikaṃ pṛṣṭhato 'nvayuḥ
    kanyāṃ kanyāṃ śataṃ nāgā nāgaṃ nāgaṃ śataṃ rathāḥ
101 rathaṃ rathaṃ śataṃ cāśvā deśajā hemamālinaḥ
    aśvam aśvaṃ śataṃ gāvo gāṃ gāṃ tadvad ajāvikam
102 etad dhanam aparyantam aśvamedhe mahāmakhe
    śaśabindur mahārāja brāhmaṇaibhyaḥ samādiśat
103 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadrataras tvayā
    putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
104 gayam āmūrtarayasaṃ mṛtaṃ śuśruma sṛñjaya
    yaḥ sa varṣaśataṃ rājā hutaśiṣṭāśano 'bhavat
105 yasmai vahnir varān prādāt tato vavre varān gayaḥ
    dadato me 'kṣayā cāstu dharme śraddhā ca vardhatām
106 mano me ramatāṃ satye tvatprasādād dhutāśana
    lebhe ca kāmāṃs tān sarvān pāvakād iti naḥ śrutam
107 darśena paurṇamāsena cāturmāsyaiḥ punaḥ punaḥ
    ayajat sa mahātejāḥ sahasraṃ parivatsarān
108 śataṃ gavāṃ sahasrāṇi śatam aśvaśatāni ca
    utthāyotthāya vai prādāt sahasraṃ parivatsarān
109 tarpayām āsa somena devān vittair dvijān api
    pitṝn svadhābhiḥ kāmaiś ca striyaḥ svāḥ puruṣarṣabha
110 sauvarṇāṃ pṛthivīṃ kṛtvā daśavyāmāṃ dvir āyatām
    dakṣimām adadad rājā vājimedhamahāmakhe
111 yāvatyaḥ sikatā rājan gaṅgāyāḥ puruṣarṣabha
    tāvatīr eva gāḥ prādād āmūrtarayaso gayaḥ
112 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadrataras tvayā
    putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
113 ranti devaṃ ca sāṅkṛtyaṃ mṛtaṃ śuśruma sṛñjaya
    samyag ārādhya yaḥ śakraṃ varaṃ lebhe mahāyaśāḥ
114 annaṃ ca no bahu bhaved atithīṃś ca labhemahi
    śraddhā ca no mā vyagaman mā ca yāciṣma kaṃ cana
115 upātiṣṭhanta paśavaḥ svayaṃ taṃ saṃśitavratam
    grāmyāraṇyā mahātmānaṃ ranti devaṃ yaśasvinam
116 mahānadī carma rāśer utkledāt susruve yataḥ
    tataś carmaṇvatīty evaṃ vikhyātā sā mahānadī
117 brāhmaṇaibhyo dadau niṣkān sadasi pratate nṛpaḥ
    tubhyaṃ tubhyaṃ niṣkam iti yatrākrośanti vai dvijāḥ
    sahasraṃ tubhyam ity uktvā brāhmaṇān sma prapadyate
118 anvāhāryopakaraṇaṃ dravyopakaraṇaṃ ca yat
    ghaṭāḥ sthālyaḥ kaṭāhāś ca pātryaś ca piṭharā api
    na tat kiṃ cid asauvarṇaṃ ranti devasya dhīmataḥ
119 sāṅkṛte ranti devasya yāṃ rātrim avasad gṛhe
    ālabhyanta śataṃ gāvaḥ sahasrāṇi ca viṃśatiḥ
120 tatra sma sūdāḥ krośanti sumṛṣṭamaṇikuṇḍalāḥ
    sūpabhūyiṣṭham aśnīdhvaṃ nādya māṃsaṃ yathā purā
121 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadrataras tvayā
    putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
122 sagaraṃ ca mahātmānaṃ mṛtaṃ śuśruma sṛñjaya
    aikṣvākaṃ puruṣavyāghram ati mānuṣavikramam
123 ṣaṣṭiḥ putrasahasrāṇi yaṃ yāntaṃ pṛṣṭhato 'nvayuḥ
    nakṣatrarājaṃ varṣānte vyabhre jyotir gaṇā iva
124 ekachatrā mahī yasya praṇatā hy abhavat purā
    yo 'śvamedha sahasreṇa tarpayām āsa devatāḥ
125 yaḥ prādāt kāñcanastambhaṃ prāsādaṃ sarvakāñcanam
    pūrṇaṃ padmadalākṣīṇāṃ strīṇāṃ śayanasaṃkulam
126 dvijātibhyo 'nurūpaibhyaḥ kāmān uccāvacāṃs tathā
    yasyādeśena tad vittaṃ vyabhajanta dvijātayaḥ
127 khānayām āsa yaḥ kopāt pṛthivīṃ sāgarāṅkitām
    yasya nāmnā samudraś ca sāgaratvam upāgataḥ
128 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadrataras tvayā
    putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
129 rājānaṃ ca pṛthuṃ vainyaṃ mṛtaṃ śuśruma sṛñjaya
    yam abhyaṣiñcan saṃbhūya mahāraṇye maharṣayaḥ
130 prathayiṣyati vai lokān pṛthur ity eva śabditaḥ
    kṣatāc ca nas trāyatīti sa tasmāt kṣatriyaḥ smṛtaḥ
131 pṛthuṃ vainyaṃ prajā dṛṣṭvā raktāḥ smeti yad abruvan
    tato rājeti nāmāsya anurāgād ajāyata
132 akṛṣṭapacyā pṛthivī puṭake puṭake madhu
    sarvā droṇa dughā gāvo vainyasyāsan praśāsataḥ
133 arogāḥ sarvasiddhārthā manuṣyā akutobhayāḥ
    yathābhikāmam avasan kṣetreṣu ca gṛheṣu ca
134 āpaḥ saṃstambhire yasya samudrasya yiyāsataḥ
    saritaś cānudīryanta dhvajasaṅgaś ca nābhavat
135 hairaṇyāṃs trinalotsedhān parvatān ekaviṃśatim
    brāhmaṇaibhyo dadau rājā yo 'śvamedhe mahāmakhe
136 sa cen mamāra sṛñjaya caturbhadrataras tvayā
    putrāt puṇyataraś caiva mā putram anutapyathāḥ
137 kiṃ vai tūṣṇīṃ dhyāyasi sṛñjaya tvaṃ; na me rājan vācam imāṃ śṛṇoṣi
    na cen moghaṃ vipralaptaṃ mayedaṃ; pathyaṃ mumūrṣor iva samyag uktam
138 [sṛnjaya]
    śṛṇomi te nārada vācam etāṃ; vicitrārthāṃ srajam iva puṇyagandhām
    rājarṣīṇāṃ puṇyakṛtāṃ mahātmanāṃ; kīrtyā yuktāṃ śokanirṇāśanārtham
139 na te moghaṃ vipralaptaṃ maharṣe; dṛṣṭvaiva tvāṃ nāradāhaṃ vi śokaḥ
    śuśrūṣe te vacanaṃ brahmavādin; na te tṛpyāmy amṛtasyeva pānāt
140 amoghadarśin mama cet prasādaṃ; sutāgha dagdhasya vibho prakuryāḥ
    mṛtasya saṃjīvanam adya me syāt; tava prasādāt suta saṃgamaś ca
141 [nārada]
    yas te putro dayito 'yaṃ viyātaḥ; svarṇaṣṭhīvī yam adāt parvatas te
    punas te taṃ putram ahaṃ dadāmi; hiraṇyanābhaṃ varṣasahasriṇaṃ ca


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